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बिहार में मतदाता सूची संशोधन (SIR) पर घमासान, सुप्रीम कोर्ट ने रोक से किया इनकार, EC से आधार और वोटर ID पर विचार को कहा
चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाम निजता के अधिकार पर बहस तेज़

संवाददाता: Mozam Khan | दिनांक: 29 जुलाई 2025

बिहार में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण (Special Summary Revision - SSR) प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक और कानूनी विवाद तेज़ हो गया है। इस प्रक्रिया में आधार और वोटर ID के लिंकिंग को लेकर उठे सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए मतदाता सूची संशोधन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन चुनाव आयोग (EC) से प्रक्रिया की पारदर्शिता और निजता अधिकारों पर पुनर्विचार करने को कहा है।

क्या है मामला?

बिहार में SSR प्रक्रिया के तहत वोटर ID से आधार लिंक कराने और मतदाता सूची को डिजिटल माध्यम से अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू की गई है। इसके तहत जिन मतदाताओं के आधार से लिंक नहीं है, उन्हें सूची से हटाने की संभावना को लेकर कई संगठन और विपक्षी दलों ने चिंता जताई है।
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि यह प्रक्रिया निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है और इससे वोटर डिलीज़न (Voter Deletion) की आशंका बढ़ जाती है, खासकर गरीब, ग्रामीण और अल्पसंख्यक वर्गों के मतदाताओं में।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा:
"हम SSR प्रक्रिया को अभी रोक नहीं सकते, क्योंकि यह एक नियमित चुनावी अभ्यास है। लेकिन हम चुनाव आयोग को यह निर्देश देते हैं कि वह आधार और वोटर ID लिंकिंग को लेकर उठे सवालों पर गंभीरता से विचार करे और सुनिश्चित करे कि किसी मतदाता का नाम गलत तरीके से ना हटाया जाए।"
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कहा कि आधार नंबर देना वैकल्पिक होना चाहिए और कोई भी मतदाता सिर्फ आधार न देने के कारण मतदाता सूची से वंचित नहीं हो सकता।

विपक्ष का हमला, EC की सफाई

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष ने राज्य और केंद्र सरकार पर चुनावों से पहले मतदाता सूची में हेरफेर का आरोप लगाया। राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा:
"बिहार में SSR के नाम पर भाजपा वोटर लिस्ट से गरीब और अल्पसंख्यक तबके के नाम हटवाना चाहती है। यह लोकतंत्र के खिलाफ साजिश है।"
हालांकि, चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि SSR प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और कानून के तहत की जा रही है। आयोग ने आश्वासन दिया कि जिन मतदाताओं के दस्तावेज़ों में गड़बड़ी है, उन्हें सुधार का पूरा मौका दिया जा रहा है।

विशेषज्ञों की राय

चुनाव और तकनीक के जानकारों का मानना है कि SSR प्रक्रिया में आधार जैसी पहचान को जोड़ना एक ओर पारदर्शिता और तकनीकी सशक्तिकरण की दिशा है, लेकिन इसका क्रियान्वयन संवेदनशील और न्यायपूर्ण ढंग से होना चाहिए, वरना वोटर सशक्तिकरण के बजाय वंचना का कारण बन सकता है।

निष्कर्ष:

बिहार में SSR प्रक्रिया को लेकर उठी बहस केवल एक राज्य का मुद्दा नहीं, बल्कि यह देश भर में चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता बनाम निजता के अधिकार पर बड़ी बहस का संकेत है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद अब गेंद चुनाव आयोग के पाले में है, जिसे यह सुनिश्चित करना होगा कि हर योग्य नागरिक का नाम मतदाता सूची में सुरक्षित रहे

संवाददाता: Mozam Khan
दिनांक: 29 जुलाई 2025

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